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बिहार में धृतराष्ट्र आलिंगन : चूका कौन, कृष्ण या भीम?

अभिव्यक्ति
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महाभारत का युद्ध जब समाप्त होता है, तो श्रीकृष्ण के सलाह पर सभी पांडव धृतराष्ट्र और गांधारी से मिलने जाते हैं. सभी पांडव अपना नाम बताते हैं और प्रणाम करते हैं. इसके बाद धृतराष्ट्र भीम (जिसने युद्ध में धृतराष्ट्र के ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को मारा था) से आलिंगन की इच्छा जताते हैं. श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र के मन की बात पढ़ लेते हैं. वे समझ जाते हैं कि यह आलिंगन भीम के लिए मृत्यु से आलिंगन होगा. वे इशारे से भीम को रोकते हैं और लोहे की मूर्ति आगे कर देते हैं, जिससे धृतराष्ट्र आलिंगन करते हैं और उसे चूर-चूर कर देते हैं. इसे ही धृतराष्ट्र आलिंगन कहा जाता है.


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बिहार में महागठबंधन टूटेगा, इसे तो सभी राजनीतिक विश्लेषक मानते थे, लेकिन इतनी जल्दी यह सब होगा किसी ने सोचा न था. खैर, जिस प्रकार गठबंधन टूटा और जिस जल्दी में सरकार बनी उसकी अपनी मजबूरियां थीं, लेकिन यह कथा इतनी जल्दी समाप्त होती दिख नहीं रही है. जदयू में जिस प्रकार विरोध के स्वर उभरे हैं, संभव है पार्टी टूट जाये, हालांकि सरकार गिरने के असर कम ही हैं. ये बातें तो भविष्य के गर्भ में हैं और आने वाले समय में ही पता चल पायेगा.


मगर इस नए गठजोड़ से एक प्रश्न यह सामने आता है कि जिस प्रकार आज चाणक्य की बात होती है कि फलां व्यक्ति उस पार्टी का चाणक्य है, तो क्या जदयू में कोई कृष्ण नहीं था, जो नीतीश कुमार को यह बता सके कि मोदी से उनका मिलन धृतराष्ट्र आलिंगन साबित होगा. या अब कृष्ण चाणक्य के सामने अपना अस्तित्व खो चुके हैं? यह प्रश्न कि क्या कृष्ण अवांक्षित हो चुके हैं, इसलिए भी लाजिमी हो गया है कि यह मिलन तब हुआ जब आलिंगन के पीछे धृतराष्ट्र की मनसा जाहिर हो चुकी थी.


भाजपा के आला नेतृत्व ने कई बार क्षेत्रीय दलों में परिवारवाद का मुद्दा उठाकर, यह संकेत दिए थे कि क्षेत्रीय पार्टी समस्या की जड़ हैं और इन्हें समाप्त करने की आवश्यकता है. दूसरा जिस प्रकार से भाजपा ने महबूबा मुफ़्ती से गठबंधन कर सरकार बनाई और उसके बाद धारा 370 एवं 35 ए पर जो रुख अख्तियार किया है, उससे तो यह स्पष्ट ही है कि क्षेत्रीय दलों के प्रति भाजपा की मंशा क्या है. उस पर सबसे अहम् बात यह कि पूर्व में भी नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा है, तो वे भाजपा के गुड बुक में तो हो नहीं सकते हैं.


ऐसे में प्रश्न यह है कि 2019 एवं 2020 में नीतीश क्या करेंगे? क्योंकि अब वे सीटों को लेकर मोलभाव करने की स्थिति में नहीं हैं और नरेन्द्र मोदी को नेता मानकर उन्होंने भविष्य के रास्ते भी बंद कर लिए हैं. इधर, भाजपा ने नीतीश कुमार के जाति के अन्दर किये गए सामाजिक अभियांत्रिकी का फायदा उठाते हुए पिछड़ी जातियों में भी पकड़ बनाई है. लालू प्रसाद के परिवार केन्द्रित होने, गलतियों से न सीखने, हाथ उठाकर (बिना किसी सांगठनिक व्यवस्था के) राजनीति करने, युवाओं को जगह न देने और राजद को यादवों तक सीमित रखने का फायदा भी भाजपा उठाएगी, जो नीतीश उठा सकते थे, लेकिन  महागठबंधन में रहते हुए वह भी खो दिया है.


मूल प्रश्न यह है कि क्या भीम ने कृष्ण के सुझाव को न मानते हुए धृतराष्ट्र से आलिंगन कर लिया है? यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि कृष्ण अब अपना दल अलग बनाएंगे या भीम दल से बाहर जाएंगे .

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